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मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का वाचन 

भारतीय उपमहाद्वीप की शीर्ष साहित्यिक कृतियों के सस्वर वाचन का जैसा संसार पाकिस्तान के अभिनेता ज़िया मुहीउद्दीन ने, रचा है और रच रहे हैं, वह बेमिसाल है। लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स से प्रशिक्षित ज़िया मोहीउद्दीन वाचन की इस विधा के अग्रणी व्यक्ति हैं। पाकिस्तान में उनके साहित्यवाचन की संध्याएं व्यापक आकर्षण का केंद्र हैं। इन संध्याओं में कविताओं, कहानियों, संस्मरणों, व्यंग्यों के अलावा उपन्यास अंशों और आत्मकथाओं को पुनर्जीवित होते सुना जाता है। ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स के माध्यम से ये घर घर पहुँचती हैं। टीवी और रेडियो पर इनका सीधा प्रसारण होता है।

Irfan with Zia Mohyeddin | March, 2015 New Delhi

इन आयोजनों ने साहित्यिक अभिरुचियों का विस्तार तो किया ही है, वाचन को एक कला के रूप में स्थापित किया है। श्रोताओं में वाचन के प्रति आकर्षण पैदा हुआ है और सुनने का आनंद उनकी कल्पनाओं को नयी ऊंचाइयां देता है। इस क्रम में अनेक साहित्यिक कृतियाँ समय की धूल से निकलकर ताज़ा हवा में सांस लेने लगती हैं। लेखन शैलियों की सतरंगी दुनियाँ में लिपटी सामाजिक सच्चाइयां सरस और रोचक ढंग से नयी पीढ़ी तक भी पहुँचती हैं। 

पेश है मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी, जिया मोहियुद्दीन की आवाज़ में –

Zia Mohyeddin, reciting a short story written by Premchand, 2006 New Delhi | Representational image of Zia Mohyeddin, Courtesy DAWN

More about Zia Mohyeddin

अविभाजित भारत के लायलपुर, फैसलाबाद में 20 जून 1931 को जन्मे जिया मोहियुद्दीन के पुरखे हरियाणा में रोहतक के थे। उनके पिता एक प्रसिद्ध गणितज्ञ, संगीताचार्य, नाटककार और गीतकार थे। ज़िया मोहिउद्दीन का शुरुआती जीवन लाहौर के कसूर में गुज़रा उसके बाद वे 1953 में लन्दन के रॉयल अकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स में दाखिल हुए जहां से 1956 में शिक्षा पूरी करके निकले। लन्दन में ही रहते हुए उन्होंने कई नाटकों का मंचन किया और शेक्स्पीरीयन नाटकों से खूब शोहरत कमाई। बहुचर्चित फिल्म ‘लॉरेंस ऑफ़ अरेबिया’ में पहली बार उन्हें अभिनय करते हुए देखा गया और फिर कई फिल्मों टीवी धारावाहिकों और नाटकों में यह सिलसिला जारी रहा। 

ज़िया मोहिउद्दीन (उम्र 7 साल, नीचे बैठे हुए) के पिता खादिम मोहिउद्दीन (बैठे, दाएं से दूसरे) सेन्ट्रल ट्रेनिंग कॉलेज ड्रामेटिक क्लब, लाहौर, 1939 | Photo Courtesy Wikipedia

1965 के आसपास वे पाकिस्तान वापस आ गए जहां 1973 तक एक लोकप्रिय टीवी शो भी होस्ट करते रहे। 1970 के आख़िरी वर्षों में जनरल जियाउलहक के सैनिक शासन से तंग आकर वे एक बार फिर इंगलैंड पंहुचे जहां 1989 तक बर्मिंघम में एक प्रसिद्ध टीवी शो होस्ट करते रहे। इस 1990 की दहाई में ज़िया मोहियुद्दीन ने दुनिया के प्रमुख शहरों में अंग्रेज़ी पत्रों और अंग्रेज़ी साहित्य की चुनिंदा रचनाओं का पाठ करना शुरू किया और पाकिस्तान वापस आकर इसे एक नियमित विधा की तरह स्थापित किया।

2005 में परवेज़ मुशर्रफ के सुझाव पर उन्होंने कराची में नेशनल अकेडमी ऑफ़ परफार्मिंग आर्ट्स स्थापित की जिसके वे आज भी अध्यक्ष हैं। 

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18 साल की उम्र तक तुतलाते थे सत्यदेव दुबे 

अपनी विशिष्ट संवाद अदायगी और स्वर नियंत्रण के लिए अनुकरणीय नाटककार, अभिनेता और निर्देशक सत्यदेव दुबे ने खुद बताया कि वे 17-18 साल की उम्र तक तुतलाते थे। उनकी यह महत्वाकांक्षा बन चुकी थी कि एक दिन वे इस दोहे को ठीक से बोल सकेंगे –

लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल 

लाली देखन मैं गयी मैं भी हो गयी लाल। 

Satyadev Dubey with Shafi Inamdar | Photo courtesy Prithvi Theatre

एक दिन एक नाटक के रिहर्सल के दौरान पार्श्वनाथ आल्तेकर ने इस बात को भाँप लिया। वे मराठी और हिंदी स्पीच सिखाते थे और सत्यदेव की लगन और अन्य क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा देख चुके थे। उन्होंने सत्यदेव दुबे की इस समस्या का निदान ढूँढा और उनसे कहा कि जब तुम बोला करो तो मुंह में उंगली या पेन्सिल कुछ रख लिया करो।

फिर क्या हुआ, यहां उनसे ही सुनिए –

सत्यदेव दुबे अपनी तुतलाहट पर विजय पाकर कितने खुश हुए 

Satyadev Dubey as Chanakya in Bharat Ek Khoj Click here for his powerful speech.

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Guftagoo: A conversational journey

‘गुफ्तगू’ के ज़रिये हम राज्य सभा टीवी पर एक ऐसा आस्वाद प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें किसी भी प्रकार की नाटकीयता और अतिशयता से अलग एक हार्दिक संवाद आपको मिल सके. इसमें हम उन सभी महत्वपूर्ण लोगों से बातें करते हैं जिनसे या तो हमारा समय और समाज प्रभावित हुआ है, हो रहा है या फिर ऐसा होने की संभावना दिखाई देती है. हमारे इस प्रयास को आप की तरफ से अब तक जैसा समर्थन, सहयोग और मार्गदर्शन मिला है उससे ऐसा लगता है कि टीवी चैनेल अपने दर्शकों की इच्छाओं की अनदेखी करते हैं. इस मामले में राज्य सभा टीवी की दूरदर्शिता और अपनी धरोहर के प्रति सम्मान की भावना ने गुफ्तगू को एक ऐसा गुलदस्ता बनाया है जिसकी खुशबू से मेरा खुद का मन आश्वस्त रहता है. मेरे पास हर रोज़ आने वाली मेल्स, फोन कॉल्स और विभिन्न माध्यमों से पहुंचने वाली सद्भावनाएं, मुझे और गुफ्तगू टीम को नयी ज़िम्मेदारियों से लैस करती हैं. मैं अपने डायस्पोरा के दर्शकों का भी ख़ास तौर पर शुक्रिया अदा करता हूं कि वे गुफ्तगू की उपादेयता के बारे में सक्रियता से हमें मेल लिखते हैं. 

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Parikshit Sahni remembering his father Balraj Sahni

टेलीविज़न और फिल्मों के ज़रिये बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाने वाले परीक्षित साहनी या कहें अजय साहनी हाल के बरसों में जिन फिल्मों में आपको दिखाई दिए हैं उनमें लगे रहो मुन्ना भाई, थ्री ईडियट्स, चांस पे डांस, मेरे ब्रदर की दुल्हन, पीके और सुलतान चर्चित फ़िल्में हैं।
परीक्षित साहनी पहली जनवरी 1944 को रावलपिंडी के पास मॅरी में जन्मे। उनके पिता प्रख्यात अभिनेता और लेखक बलराज साहनी थे और उनकी मां दमयंती साहनी स्वयं एक कुशल रंगकर्मी थीं।

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Akshay Kumar

Rajiv Hari Om Bhatia known professionally as Akshay Kumar, is an Indian born Canadian actor, producer, television personality, martial artist, stuntman and philanthropist who works in Bollywood films. In a career spanning over twenty five years, Kumar has appeared in over a hundred films and has won several awards, including the National Film Award for Best Actor.

Watch Guftagoo with Akshay Kumar | Recorded in Delhi | May 27. 2014

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Meet Naresh Banerji

Naresh Banerjee, also known as Bratachari Nareshji has been a demonstrator of the folk dances ( Raibenshe, Dhali, kathi, jhumur etc). He gained popularity by teaching the “Raibenshe” dance, one of the major folk martial dances of Bengal. He started his career as the gallery assistant of the Gurusaday museum, a platform dedicated to showcase folk art and craft of Bengal, founded by Gurusaday Dutt ICS who was also the founder of the Bratachari movement in Bengal . Nareshji’s love for folk art inspired thousands across the border, as a result he conducted his workshops not only in the Bengal Bratachari Society but also in institutions, universities and governments in Bengal & Bangladesh. He is the honourable secretary of “education & cultural heritage” of Bengal bratachari society. He is currently working for the M.A department of folk dance of Bengal as a Guest Teacher of folk dance (Raibenshe, Dhali) at Viswa Bharati University. He acts as an advisor for the COLLEGE STREET PROJECT SIXTEEN, a cultural & welfare organization in Kolkata, West bengal. Due to his long lasting contribution, the government of India awarded him with the title of “GURU OF RAIBENSHE DANCE” under the ‘Guru shishya parampara’ scheme in 2003-2005. The purpose of this scheme was to fortify and stimulate the regional folk dances of India. He was invited as a lecturer to deliver a commemorative speech on ‘Kobi Abdul Gaffar Dutta Chaudhari Sarok boktrita 2008’ in 2009 for Sahajlal Science & technology, Sylhet Bangladesh. He was also part of the folk dances’ team of India in Russia in 1987

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