भारतीय उपमहाद्वीप की शीर्ष साहित्यिक कृतियों के सस्वर वाचन का जैसा संसार पाकिस्तान के अभिनेता ज़िया मुहीउद्दीन ने, रचा है और रच रहे हैं, वह बेमिसाल है। लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स से प्रशिक्षित ज़िया मोहीउद्दीन वाचन की इस विधा के अग्रणी व्यक्ति हैं। पाकिस्तान में उनके साहित्यवाचन की संध्याएं व्यापक आकर्षण का केंद्र हैं। इन संध्याओं में कविताओं, कहानियों, संस्मरणों, व्यंग्यों के अलावा उपन्यास अंशों और आत्मकथाओं को पुनर्जीवित होते सुना जाता है। ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स के माध्यम से ये घर घर पहुँचती हैं। टीवी और रेडियो पर इनका सीधा प्रसारण होता है।
इन आयोजनों ने साहित्यिक अभिरुचियों का विस्तार तो किया ही है, वाचन को एक कला के रूप में स्थापित किया है। श्रोताओं में वाचन के प्रति आकर्षण पैदा हुआ है और सुनने का आनंद उनकी कल्पनाओं को नयी ऊंचाइयां देता है। इस क्रम में अनेक साहित्यिक कृतियाँ समय की धूल से निकलकर ताज़ा हवा में सांस लेने लगती हैं। लेखन शैलियों की सतरंगी दुनियाँ में लिपटी सामाजिक सच्चाइयां सरस और रोचक ढंग से नयी पीढ़ी तक भी पहुँचती हैं।
पेश है मुंशी प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी, जिया मोहियुद्दीन की आवाज़ में –
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अविभाजित भारत के लायलपुर, फैसलाबाद में 20 जून 1931 को जन्मे जिया मोहियुद्दीन के पुरखे हरियाणा में रोहतक के थे। उनके पिता एक प्रसिद्ध गणितज्ञ, संगीताचार्य, नाटककार और गीतकार थे। ज़िया मोहिउद्दीन का शुरुआती जीवन लाहौर के कसूर में गुज़रा उसके बाद वे 1953 में लन्दन के रॉयल अकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स में दाखिल हुए जहां से 1956 में शिक्षा पूरी करके निकले। लन्दन में ही रहते हुए उन्होंने कई नाटकों का मंचन किया और शेक्स्पीरीयन नाटकों से खूब शोहरत कमाई। बहुचर्चित फिल्म ‘लॉरेंस ऑफ़ अरेबिया’ में पहली बार उन्हें अभिनय करते हुए देखा गया और फिर कई फिल्मों टीवी धारावाहिकों और नाटकों में यह सिलसिला जारी रहा।
1965 के आसपास वे पाकिस्तान वापस आ गए जहां 1973 तक एक लोकप्रिय टीवी शो भी होस्ट करते रहे। 1970 के आख़िरी वर्षों में जनरल जियाउलहक के सैनिक शासन से तंग आकर वे एक बार फिर इंगलैंड पंहुचे जहां 1989 तक बर्मिंघम में एक प्रसिद्ध टीवी शो होस्ट करते रहे। इस 1990 की दहाई में ज़िया मोहियुद्दीन ने दुनिया के प्रमुख शहरों में अंग्रेज़ी पत्रों और अंग्रेज़ी साहित्य की चुनिंदा रचनाओं का पाठ करना शुरू किया और पाकिस्तान वापस आकर इसे एक नियमित विधा की तरह स्थापित किया।
2005 में परवेज़ मुशर्रफ के सुझाव पर उन्होंने कराची में नेशनल अकेडमी ऑफ़ परफार्मिंग आर्ट्स स्थापित की जिसके वे आज भी अध्यक्ष हैं।