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18 साल की उम्र तक तुतलाते थे सत्यदेव दुबे 

अपनी विशिष्ट संवाद अदायगी और स्वर नियंत्रण के लिए अनुकरणीय नाटककार, अभिनेता और निर्देशक सत्यदेव दुबे ने खुद बताया कि वे 17-18 साल की उम्र तक तुतलाते थे। उनकी यह महत्वाकांक्षा बन चुकी थी कि एक दिन वे इस दोहे को ठीक से बोल सकेंगे –

लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल 

लाली देखन मैं गयी मैं भी हो गयी लाल। 

Satyadev Dubey with Shafi Inamdar | Photo courtesy Prithvi Theatre

एक दिन एक नाटक के रिहर्सल के दौरान पार्श्वनाथ आल्तेकर ने इस बात को भाँप लिया। वे मराठी और हिंदी स्पीच सिखाते थे और सत्यदेव की लगन और अन्य क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा देख चुके थे। उन्होंने सत्यदेव दुबे की इस समस्या का निदान ढूँढा और उनसे कहा कि जब तुम बोला करो तो मुंह में उंगली या पेन्सिल कुछ रख लिया करो।

फिर क्या हुआ, यहां उनसे ही सुनिए –

सत्यदेव दुबे अपनी तुतलाहट पर विजय पाकर कितने खुश हुए 

Satyadev Dubey as Chanakya in Bharat Ek Khoj Click here for his powerful speech.

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